गरीबी के गुब्बारे पर होगी अब सवारी,
नज़र मे है गरीब किसान,मजदूर और भिखारी।
अभी 3 रू किलो चावल,5 रू का दाल भात,
किसानों को मुफ्त बिज़ली,ऋण माफी की दे सौगात।
कर रहे हैं अतिक्रमण,देश भ्रमण,वोट हमारा है,
भ्रष्टाचार,भ्रष्ट सरकार,यही मज़बुत सहारा है।
सिखलाते हैं "साहब" तुमको एक महामंत्र,
काम बनायेँ आपना बऱकरार लोकतंत्र।
जिसकी लाठी उसकी भैंस,वर्चश्व न छुटे,
साँप भी मर जाय,अपनी लाठी कभी न टूटे।
आयेगें फिर से माँगने हम तुम्हारे वोट,
छीना है जो पाँच साल तक देगें इक दिन नोट।
गाँव गाँव और शहर शहर मे पुँछ परख़ है जारी,
गरीबी की रेखा मे सामंतों की लिस्ट है भारी।
गरीबी हटायेंगें "साहब" लगा रहें हैं नारा,
गरीबों को ही हटा देगें खेल खतम है सारा।