Monday 3 September, 2007

पी डी एफ फाइल को वर्ड मे कैसे बदलें ?

पी डी एफ फाइल को वर्ड मे कैसे बदलें ?
कुछ मित्रों की जीज्ञासा थी कि पीडीएफ को वर्ड मे बदलने हेतु कौन सा साँफ्टवेयर है पी0डी0एफ को अन्य डाकुमेंट फाँरमेट में बदलने हेतु कारगर टुल है यह आर टी एफ RTF वर्ड फार्मेट में बदलता है एक साथ कई फाइलों का कन्वर्जन किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त इसमे अनेक फीचर हैं । अन्य टूल्स के मुकाबले इसने कनवर्जन मे फार्मेटिंग बेहतर तरीके से बरकरार रखा । इंस्टाल करते वक्त यह नैट से कुछ फाइलें डाउनलोड करता है । इसके लिए आपको www.pdf-to-html-word.com/
क्लिक करना होगा । PDF to word, PDF Ripper, Solid converter, PDF आदि। इनमे से PDF to Word का प्रयोग करते वक्त कुछ दिक्कतें आती हैं जैसे उसमें फाँरमेटिंग गड़बड़ा जाती है । उकरोक्त सभी टूल
शेयरवेयर हैं। पीडीएफ से वर्ड मे बदलने के एक और फायदा है कि कई हार कुछ पीडीएफ फाइलें पासवर्ड से सुरक्षित होती हैं जिससे आप उनसे टैक्स्ट काँपी नहीं कर सकते। लेकिन इन टूल्स द्वारा वर्ज मे बदलने के बाद ऐसा किया जा सकता है।

भारत भाषा

जब भी महफिल मे आता हुँ,
खुद को अकेला ही पाता हुँ।

तनहाई का आलम ऐसा,
“न्युज” चल रहा रेडियो पर जैसा ।
खुद ही कहता, खुद ही सुनता,
खुद ही मंद-मंद मुस्काता हुँ ।(1)
जब भी महफिल……………..

जब से आया “विडियो” का खेला,
रोज़ लगाते परदे पर मेला ।
लिखना पढ़ना किसे भाता है,
कौन रोज़ “ज़ाल” पर आता है ।(2)
जब भी महफिल……………..

हाय री “हिन्दी”, “हिन्द की बिन्दी”,क्यो लगती घबराई सी,
“सौ करोड़” हाथ हैं तेरे, फिर भी तु मुरझाई सी ।
अंग्रेजी के ज़ाल को देखा,उसकी “गलती दाल” को देखा,
भाषा के जंज़ाल को देखा,कौतुहल से कमाल को देखा ।
पर बात जो है हिन्दी मे, “साहब” प्रफुल्लित हो जाता हुँ ।(3)
जब भी महफिल………………

तुम्हें क्या बतलाऊँ, क्योँ फूँक-फूँक कर खाता हुँ,
इतिहास देख गुलामी की, “साहब” सिहर जाता हुँ ।
जिसने “राम को रामा”,”वैश्य को वैश्या” कर दिया,
जिसने माँ को “मंमी”,(मरी हुई) बाप को “डेड” (मरा हुआ) कर दिया ।
इस “अंग्रेजी” को सोच समझ कर अपनाता हुँ ।(4)
जब भी महफिल………………..

खुदा करे ऐसा हो पाए, “भारत भाषा” जग पर झाए,
चन्द लोग ही क्यों “ज़ाल” पर आएँ,”हिन्दी का हम ज़ाल बिछायें” ।
जोड़-तोड़, टूटी-फूटी, बहू भाषा की मीली-जूली,
सुन्दर लगती “साहब” की बोली, जब “हिन्दी” में गाता हुँ ।(5)
जब भी महफिल मे आता हुँ,
खुद को अकेला ही पाता हुँ ।

साहेब अली