जो ज़ख्म दिये है आपने भुलें नहीं हैं हम,
क्यों प्यार फिर भी आपसे होता नहीं है कम।
"साहेब" को भुलने की "साहब" ने जो कोशिस की,
ऱहमतों की बाऱिश न हुई डूबा नहीं ये गम।
आस्तिनों के साँपों को दुध से नहलाया मैने,
काटते जो थे पलट पलट कर लेते नहीं थे दम।
आँखें खुली थी जब तलक़ बहुत देर हो चुकी,
जुल्मो सितम के साये से लिपटे हुये थे हम।
ऐ बेवफ़ा, बेवफ़ाई कब तक जलायेगी हमें,
पलटेगी जब हवा ख़ाक हो ज़ायेगा सारा वहम।
एहस़ान फ़रामोशी देखी नहीं अब तक ऐसी,
य़ाद आई है जब भी "साहब" आँखें हुई हैं नम।
तूझे क्या कहुँ, तुने लाख की है बेवफ़ाई,
ऐ वफ़ा, तुँ हो बावफ़ा ख़त्म कर जुल्मों सितम।
तुझे भुलने की ईक लाख़ कोशिस कर चुका,
पर भुलाये नहीं भूल पाया एहसासे गम।
रूख़सतें रूक, हम भी चलते हैं धीरे धीरे,
राहें कहीं तो ख़त्म होगी तब आयेगा दम मे दम।