आज जब सुबह अपना मेल देख रहा था तो दोखा कि सी नेट वालों का आया हुआ है,28000 डालर का की बोर्ड, यह देख कर ईच्छा जागी कि इतना महंगा की बोर्ड,आखिर इसमे है क्या- सीनेट लिंक पर जा कर देखा,यदि आपको भी देखना हो तो लिंक दे रहा हु यहाँ चटकाईए और देख आइए।
चटकायें
इस ब्लाग पर आपका स्वागत है। मेरी एक और ब्लाग"Bhilai_Saheb" का अवलोकन भी अवश्य करें।
Saturday 15 September, 2007
Friday 14 September, 2007
नसीब अपना-अपना
न मंज़िल का पता बाकी रहा,
न कांरवाँ ही ख़ाकी रहा,
मै ढुंढता हुँ यहाँ वहाँ,
न मंज़िल मिली,न कारवाँ ।
रह गुज़र जितने मिले,
उम्मीद से ज्यादा फितने मिले,
मैने ढुंढा तो ईक पता मिला,
फिर पता दर पता मिला ।
मैने देखा तो वो ईक कीताब था,
मेरी आरज़ुओँ का हिसाब था,
हर गुन को देखा बार-बार,
हर श़य को देखा चार बार ।
हिसाब कुछ अज़ीब था,
"साहब" का वो नसीब था ।
sahebali
न कांरवाँ ही ख़ाकी रहा,
मै ढुंढता हुँ यहाँ वहाँ,
न मंज़िल मिली,न कारवाँ ।
रह गुज़र जितने मिले,
उम्मीद से ज्यादा फितने मिले,
मैने ढुंढा तो ईक पता मिला,
फिर पता दर पता मिला ।
मैने देखा तो वो ईक कीताब था,
मेरी आरज़ुओँ का हिसाब था,
हर गुन को देखा बार-बार,
हर श़य को देखा चार बार ।
हिसाब कुछ अज़ीब था,
"साहब" का वो नसीब था ।
sahebali
Wednesday 12 September, 2007
संस्कार
कभी पोरबंदर एक अलग राज्य था। इसके दीवान थे ओता गाँधी। वह मोहनदास करमचंद गांधी के दादाश्री थे। ओता जी अपनी इमानदारी,दायाभाव के कारण गरीबो के अभिन्न मित्र माने जाते थे। जब उनकी बेटी की शादी हुई, उनके घर उपहारो का अंबार लग गया। कुछ उनकी पदवी के कारण तो कुछ अपने सदब्योहार के कारण। बिवाह कार्य समपन्न हो गया। ठीक ठाक।
ओताजी ने इन ढेरों उपहारो को कई घोड़ों पर लदवाया। इसे राजा तक पहुचाकर कहा इन पर मेरा कोई हक नही। ये आप की प्रजा ने दिये हैं, यदि मै दिवान ना होता तो इतने उपहार न मिलते। मै इन्ही सरकारी खजाने मे जमा करवा रहा हुँ।
राजा पोरबंदर ने अपने दीवान के इस कदम पर प्रसंन्न होकर उनके द्वारा शादी पर किए गये सारे खर्च की भरपाई खजाने से कराने के आदेश दिए यह परतोषिक था इमानदारी का इतनी बडी रकम को राजा से हासिल न करना राजा का अपमान होता है उसके आदेशों की अवहेलना होती है, अतःओता गांधी ने राज्य कोष से आई रकम रख ली। इसे सहर्ष स्वीकार करने के बाद, राजा का पहले धन्यबाद किया। फिर सारी रकम को सधन्यनाद लौटा कर, अपनी प्रसंशा मे बृद्धि कर ली।
ओता गाधी बोले-राजन शुक्रिया, मगर मुझे इस रकम की जरुरत नही इसकी जरुरत गरीबों, बीमारो, अनाथों तथा असहायो को है। कृपया इसे ऐसे ही लोगो मे बटवा दे। मै आपका आभारी रहुँगा। इतना सुनते ही स्यंव राजा की आँखे खुशी से डबडबाने लगे। एसे ही थे ओता गांधी। रास्ट्रपिता महात्मा गांधी। के दादा। शायद इन्ही वंशानुगत संस्कारो का सुपरिणाम था कि आगे चलकर इसी परिवार मे करमचंद मोहन दास गाँधी यानी रास्ट्रपिता गाँधी ने विश्वभर मे अपने नाम का डंका बजवा लिया।
Tuesday 11 September, 2007
11 सितंबर
11 सितंबर,बरबस ही ध्यान अमेरिका की ओर जाता है। पर भारत में 11 सितबंर का महत्व कुछ अलग है, जानने वाले जानते होंगें, न जानने वाले जान लें,-
11 सितंबर 1839 को संयुक्त राज्य अमेरीका के शिकागो नगर में संपन्न विश्व धर्म संसद की सभा में स्वामी विवेकानंद का भाषण है जिसने तहलका मचा दिया था। अपने भाषण मे उन्होने कहा था कि सभी धर्मो और पंथों के अनुयायी अपने अपने मार्ग पर चलते हुए एक ही ईश्वर के पास पहुँचते हैं।
11 सितंबर 1906 के दिन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग स्थित ट्राँसवाल मे आयोजित भारतीयों की एक सभा में एशियाई रजिस्ट्रेशन अधिनियम के विरुद्ध शपथ ली गई,कि इस कानुन को वे नहीं मानेगें चाहे जितना कष्ट सहना पड़े। महात्मा गाँधी की पुरी सहानुभुती निर्धन,दलित और पीड़ितों के साथ थी। गाँधी जी ने सर्वधर्म समभाव पर बहुत बल दिया था,उनका कहना था सब धर्म ईश्वर के दिये हुये हैं धर्म मनुष्य की पहुच से परे है, सब अपनी अपनी दृष्टि के मुताबीक चलते हैं तब तक सच्चे हैं।
11 सितंबर 1895 विनोबा जी का जन्म दिवस, विनोबा जी ने लोगों को दुसरे धर्म के बारे मे सही जानकारी हो और उनकी भ्रांतियाँ दुर हो , उन्होने न्यू टेस्टामेंट,कुरानशरीफ,जपुजी व धमम्पद जैसी पुस्तकों का सार नीकाला और प्रकाशित किया। उन्होने भूदान-ग्रामदान आंदोलन मे अपनी पूरी शक्ती लगाई वह मानव इतिहास में अद्वितीय हैं।
Sunday 9 September, 2007
स्वामी विवेकानंद का एक कथन
राष्ट्र की उँचाई नागरिको के मनोबल की ऊंचाई के सहारे आंके जाती है। स्वामी विबेकानंद एक अनन्य राष्ट्र भक्त थे। उन्होने विश्व के अनेक देशों मे भ्रमण करके भारत वर्ष के महत्व को दर्शाया था। आज भी उन्हे पूरा विश्व स्मरण करता है। वह जानते थे कि अध्यात्म और भगवद् भजन धार्मिक प्रवृत्ति के लिए आवश्यक है किंतु देश कि स्वतंत्रता के लिए स्वस्थ शरिरयुक्त पुरूषों का होना भी उतना ही आवश्यक है। उनका मनतब्य यह भी रहा है कि गीता पाठ की अपेक्षा ब्यायाम करने मे तुम स्वर्ग के अधिक समीप पहुच सकोगे। स्पष्टपतःगीता पाठ के माध्यम से इश्वर मे लीन होना ही तो है किन्तु शरीर स्वस्थ होगा तो अनेक महत्वपुर्ण काम भी किये जा सकते है, जिनसे राष्ट्र और समाज का हित हो यही कर्म आनंद उपलब्ध कराता है परतंत्र भारत मे दबे हुए ब्यक्ति अंग्रेज सरकार के प्रति कर्तब्निष्ठ रहते थे, कि गुलामी को कर्तब्य समझ लेना कितना आसान है, जब कि कर्तब्यनिष्ठ उन लोगो से बहुत दूर थी देशवासियोँ को उन्होने यही पाठ पढाया कि जिसे अपने आप मे विश्वास नही है, उसे भगवान मे भी विश्वास नही हो सकता। वास्तविकता यही थी कि गुलामी से मुक्ति होने के लिए प्रत्येक मनुष्य को स्वावलंबी और आत्मविश्वासी होना आवश्यक था। स्वामी जी द्वारा आत्मविश्वास का जो अलख जन जन के मन मस्तिक मे उस समय जगाया गया वह आज भी अपरिवर्तित ही है। आज जब भारतवासी स्वतंत्र हैं, इस राष्ट्र मे उपल्बध ब्याधियो से छुटकारा पाने के लिए यदि आत्मविश्वास का सम्बल मनुष्य मात्र के साथ हो अथवा रहे शरीर स्वस्थ हो और सवतंत्र रहने की इच्छा हो तो देश की प्रगति को कोइ नहीं रोक पायेगा। आत्म विवेचना के संदर्भ मे स्वामी जी का कथन था कि स्वयं का इच्छा या बुरापन दुसरे की दृष्टि से मत नापो, ऐसा करना अपने मन कि दुर्बलता दिखाना है। मनुष्य कैसा है , यह आकलन वह स्वयं करे तो सही होगा।।।।।
Saturday 8 September, 2007
पढ़े लिखे निरक्षर ?
17 जुलाई को समाचार पत्र में पढ़ा था कि अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के दिन नव गठित राज्य छत्तीसगढ़ का नाम गीनीज बुक आफ वल्ड रीकार्ड अथवा लिम्का बुक मे शामिल हो सकता है, यह कोशिश प्रदेशव्यापी पुस्तक वाचन अभीयान के जरिये की जा रही थी। छत्तीसगढ़ के 14 जिलों में कुल 20,००० (बीस हजार) पुस्तक वाचन केन्द्र बनाये गये, जिसके तहत प्रदेश के १.३० करोड़ किशोर, युवा, वृद्ध, सुबह ८ बजे से रात ८ बजे तक बारी-बारी से ज्ञानवर्धक पुस्तकों का पठन-पाठन करेंगें।
वैसे तो प्रदेश की साक्षरता दर औसतन लगभग 75 है।
प्रदेश की सरकार और मीडिया कुछ भी कहे पर मै जिस-जिस वाचन केन्द्र गया पाठकों की सर्वथा कमी पाई गई, और हिन्दी पुस्तकों की कमी अत्यधिक खली, स्कुली छात्रों की स्वयं की पुस्तकें भी नादारत,
क्योंकि सरकार द्वारा कक्षा 1 से कक्षा 12 तक की सभी पुस्तकें निशुल्क उपलब्ध कराना था पर आज तक सभी पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो सकी, ईसके विपरीत शिक्षा विभाग कार्यालय में किताबें दीमक चाटती दीखीं।
चिन्तन का विषय यह है कि एक ओर हिन्दी के प्रयोग, साक्षरता कार्यक्रमों में सरकार द्वारा करोड़ो रुपये खर्च किये जाते हैं। किन्तू जनता इतनी साक्षर है कि उसे साक्षरता कार्यक्रमो की जरुरत ही नहीं।
वैसे तो प्रदेश की साक्षरता दर औसतन लगभग 75 है।
प्रदेश की सरकार और मीडिया कुछ भी कहे पर मै जिस-जिस वाचन केन्द्र गया पाठकों की सर्वथा कमी पाई गई, और हिन्दी पुस्तकों की कमी अत्यधिक खली, स्कुली छात्रों की स्वयं की पुस्तकें भी नादारत,
क्योंकि सरकार द्वारा कक्षा 1 से कक्षा 12 तक की सभी पुस्तकें निशुल्क उपलब्ध कराना था पर आज तक सभी पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो सकी, ईसके विपरीत शिक्षा विभाग कार्यालय में किताबें दीमक चाटती दीखीं।
चिन्तन का विषय यह है कि एक ओर हिन्दी के प्रयोग, साक्षरता कार्यक्रमों में सरकार द्वारा करोड़ो रुपये खर्च किये जाते हैं। किन्तू जनता इतनी साक्षर है कि उसे साक्षरता कार्यक्रमो की जरुरत ही नहीं।
Monday 3 September, 2007
पी डी एफ फाइल को वर्ड मे कैसे बदलें ?
पी डी एफ फाइल को वर्ड मे कैसे बदलें ?
कुछ मित्रों की जीज्ञासा थी कि पीडीएफ को वर्ड मे बदलने हेतु कौन सा साँफ्टवेयर है पी0डी0एफ को अन्य डाकुमेंट फाँरमेट में बदलने हेतु कारगर टुल है यह आर टी एफ RTF वर्ड फार्मेट में बदलता है एक साथ कई फाइलों का कन्वर्जन किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त इसमे अनेक फीचर हैं । अन्य टूल्स के मुकाबले इसने कनवर्जन मे फार्मेटिंग बेहतर तरीके से बरकरार रखा । इंस्टाल करते वक्त यह नैट से कुछ फाइलें डाउनलोड करता है । इसके लिए आपको www.pdf-to-html-word.com/
क्लिक करना होगा । PDF to word, PDF Ripper, Solid converter, PDF आदि। इनमे से PDF to Word का प्रयोग करते वक्त कुछ दिक्कतें आती हैं जैसे उसमें फाँरमेटिंग गड़बड़ा जाती है । उकरोक्त सभी टूल
शेयरवेयर हैं। पीडीएफ से वर्ड मे बदलने के एक और फायदा है कि कई हार कुछ पीडीएफ फाइलें पासवर्ड से सुरक्षित होती हैं जिससे आप उनसे टैक्स्ट काँपी नहीं कर सकते। लेकिन इन टूल्स द्वारा वर्ज मे बदलने के बाद ऐसा किया जा सकता है।
कुछ मित्रों की जीज्ञासा थी कि पीडीएफ को वर्ड मे बदलने हेतु कौन सा साँफ्टवेयर है पी0डी0एफ को अन्य डाकुमेंट फाँरमेट में बदलने हेतु कारगर टुल है यह आर टी एफ RTF वर्ड फार्मेट में बदलता है एक साथ कई फाइलों का कन्वर्जन किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त इसमे अनेक फीचर हैं । अन्य टूल्स के मुकाबले इसने कनवर्जन मे फार्मेटिंग बेहतर तरीके से बरकरार रखा । इंस्टाल करते वक्त यह नैट से कुछ फाइलें डाउनलोड करता है । इसके लिए आपको www.pdf-to-html-word.com/
क्लिक करना होगा । PDF to word, PDF Ripper, Solid converter, PDF आदि। इनमे से PDF to Word का प्रयोग करते वक्त कुछ दिक्कतें आती हैं जैसे उसमें फाँरमेटिंग गड़बड़ा जाती है । उकरोक्त सभी टूल
शेयरवेयर हैं। पीडीएफ से वर्ड मे बदलने के एक और फायदा है कि कई हार कुछ पीडीएफ फाइलें पासवर्ड से सुरक्षित होती हैं जिससे आप उनसे टैक्स्ट काँपी नहीं कर सकते। लेकिन इन टूल्स द्वारा वर्ज मे बदलने के बाद ऐसा किया जा सकता है।
भारत भाषा
जब भी महफिल मे आता हुँ,
खुद को अकेला ही पाता हुँ।
तनहाई का आलम ऐसा,
“न्युज” चल रहा रेडियो पर जैसा ।
खुद ही कहता, खुद ही सुनता,
खुद ही मंद-मंद मुस्काता हुँ ।(1)
जब भी महफिल……………..
जब से आया “विडियो” का खेला,
रोज़ लगाते परदे पर मेला ।
लिखना पढ़ना किसे भाता है,
कौन रोज़ “ज़ाल” पर आता है ।(2)
जब भी महफिल……………..
हाय री “हिन्दी”, “हिन्द की बिन्दी”,क्यो लगती घबराई सी,
“सौ करोड़” हाथ हैं तेरे, फिर भी तु मुरझाई सी ।
अंग्रेजी के ज़ाल को देखा,उसकी “गलती दाल” को देखा,
भाषा के जंज़ाल को देखा,कौतुहल से कमाल को देखा ।
पर बात जो है हिन्दी मे, “साहब” प्रफुल्लित हो जाता हुँ ।(3)
जब भी महफिल………………
तुम्हें क्या बतलाऊँ, क्योँ फूँक-फूँक कर खाता हुँ,
इतिहास देख गुलामी की, “साहब” सिहर जाता हुँ ।
जिसने “राम को रामा”,”वैश्य को वैश्या” कर दिया,
जिसने माँ को “मंमी”,(मरी हुई) बाप को “डेड” (मरा हुआ) कर दिया ।
इस “अंग्रेजी” को सोच समझ कर अपनाता हुँ ।(4)
जब भी महफिल………………..
खुदा करे ऐसा हो पाए, “भारत भाषा” जग पर झाए,
चन्द लोग ही क्यों “ज़ाल” पर आएँ,”हिन्दी का हम ज़ाल बिछायें” ।
जोड़-तोड़, टूटी-फूटी, बहू भाषा की मीली-जूली,
सुन्दर लगती “साहब” की बोली, जब “हिन्दी” में गाता हुँ ।(5)
जब भी महफिल मे आता हुँ,
खुद को अकेला ही पाता हुँ ।
साहेब अली
खुद को अकेला ही पाता हुँ।
तनहाई का आलम ऐसा,
“न्युज” चल रहा रेडियो पर जैसा ।
खुद ही कहता, खुद ही सुनता,
खुद ही मंद-मंद मुस्काता हुँ ।(1)
जब भी महफिल……………..
जब से आया “विडियो” का खेला,
रोज़ लगाते परदे पर मेला ।
लिखना पढ़ना किसे भाता है,
कौन रोज़ “ज़ाल” पर आता है ।(2)
जब भी महफिल……………..
हाय री “हिन्दी”, “हिन्द की बिन्दी”,क्यो लगती घबराई सी,
“सौ करोड़” हाथ हैं तेरे, फिर भी तु मुरझाई सी ।
अंग्रेजी के ज़ाल को देखा,उसकी “गलती दाल” को देखा,
भाषा के जंज़ाल को देखा,कौतुहल से कमाल को देखा ।
पर बात जो है हिन्दी मे, “साहब” प्रफुल्लित हो जाता हुँ ।(3)
जब भी महफिल………………
तुम्हें क्या बतलाऊँ, क्योँ फूँक-फूँक कर खाता हुँ,
इतिहास देख गुलामी की, “साहब” सिहर जाता हुँ ।
जिसने “राम को रामा”,”वैश्य को वैश्या” कर दिया,
जिसने माँ को “मंमी”,(मरी हुई) बाप को “डेड” (मरा हुआ) कर दिया ।
इस “अंग्रेजी” को सोच समझ कर अपनाता हुँ ।(4)
जब भी महफिल………………..
खुदा करे ऐसा हो पाए, “भारत भाषा” जग पर झाए,
चन्द लोग ही क्यों “ज़ाल” पर आएँ,”हिन्दी का हम ज़ाल बिछायें” ।
जोड़-तोड़, टूटी-फूटी, बहू भाषा की मीली-जूली,
सुन्दर लगती “साहब” की बोली, जब “हिन्दी” में गाता हुँ ।(5)
जब भी महफिल मे आता हुँ,
खुद को अकेला ही पाता हुँ ।
साहेब अली
Wednesday 1 August, 2007
mehandi hina Designs Indian style. मेहंदी
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Wednesday 25 July, 2007
"धर्मनिरपेक्ष"
सभी धर्मो की सभा में उप्स्थित एक धर्म ने कहा,
चूंकि चित को एकाग्र करने के लिए एक प्रतीक चाहिए,
सो मैं मूर्ति पुजा का पछधर हूं।"
एक धर्म ने अन्य दो धर्मो से अपनी स्रेस्ठता सिद्ध करनेके उद्देश्य से कहा।
"मैं तो मूर्तिपूजा के सख्त खिलाफ हूं,
पर मैं मुर्दो की पुजा का पछधर हूं सो मैं श्रेश्ठ हूं"।
दुसरे धर्म ने कहा।
"मै तो मूर्ति पुजा का कट्टर विरोधी हूं,
पर मै एक स्थान-विशेष पर बैठ कर एक चित्र विशेष की पूजा,
उससे प्राथना आराधना का पक्षधर हूं,
सो मैं तुम दोनो से श्रेष्ठ हूं।" तीसरे धर्म ने कहा ।
श्रेष्ठता सिद्ध करने की होड में वे तीनो "धर्मनिरपेक्ष" के पास निर्णय के लिए पहूंचे
और उसके समक्ष अपना-अपना पक्ष रखा। "धर्मनिरपेक्ष" यह सोच कर मुस्कुराया कि
प्रतीक की पुजा तो तीनो ही में प्रचलित है,
पर उसने बडी ही समझदारी से उत्तर दिया,
"जिस धर्म का पालन करनेवाले जहां अधिक हैं,
वहां पर वह धर्म श्रेष्ठ है।
तुम लोगों की श्रेष्ठता तुम्हारेसिद्धांतों मे नहीं,बल्कि बहुमत में है।
चूंकि चित को एकाग्र करने के लिए एक प्रतीक चाहिए,
सो मैं मूर्ति पुजा का पछधर हूं।"
एक धर्म ने अन्य दो धर्मो से अपनी स्रेस्ठता सिद्ध करनेके उद्देश्य से कहा।
"मैं तो मूर्तिपूजा के सख्त खिलाफ हूं,
पर मैं मुर्दो की पुजा का पछधर हूं सो मैं श्रेश्ठ हूं"।
दुसरे धर्म ने कहा।
"मै तो मूर्ति पुजा का कट्टर विरोधी हूं,
पर मै एक स्थान-विशेष पर बैठ कर एक चित्र विशेष की पूजा,
उससे प्राथना आराधना का पक्षधर हूं,
सो मैं तुम दोनो से श्रेष्ठ हूं।" तीसरे धर्म ने कहा ।
श्रेष्ठता सिद्ध करने की होड में वे तीनो "धर्मनिरपेक्ष" के पास निर्णय के लिए पहूंचे
और उसके समक्ष अपना-अपना पक्ष रखा। "धर्मनिरपेक्ष" यह सोच कर मुस्कुराया कि
प्रतीक की पुजा तो तीनो ही में प्रचलित है,
पर उसने बडी ही समझदारी से उत्तर दिया,
"जिस धर्म का पालन करनेवाले जहां अधिक हैं,
वहां पर वह धर्म श्रेष्ठ है।
तुम लोगों की श्रेष्ठता तुम्हारेसिद्धांतों मे नहीं,बल्कि बहुमत में है।
सारे जहां से अच्छा
मजहब नहीं सिखता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा.
ईरान-ओ-मिश्र-ओ-रुमा सब मिट गये जहां से,
फिर भी अभी है बाकी नामो निशां हमारा.
"ईकबाल"
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा.
ईरान-ओ-मिश्र-ओ-रुमा सब मिट गये जहां से,
फिर भी अभी है बाकी नामो निशां हमारा.
"ईकबाल"
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