Wednesday 25 July, 2007

सारे जहां से अच्छा

मजहब नहीं सिखता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा.
ईरान-ओ-मिश्र-ओ-रुमा सब मिट गये जहां से,
फिर भी अभी है बाकी नामो निशां हमारा.
"ईकबाल"

1 comment:

ePandit said...

इकबाल का ये तराना तो लाजवाब है, वैसे पूरा पेश करते न।