Wednesday 25 July, 2007

"धर्मनिरपेक्ष"

सभी धर्मो की सभा में उप्स्थित एक धर्म ने कहा,
चूंकि चित को एकाग्र करने के लिए एक प्रतीक चाहिए,
सो मैं मूर्ति पुजा का पछधर हूं।"
एक धर्म ने अन्य दो धर्मो से अपनी स्रेस्ठता सिद्ध करनेके उद्देश्य से कहा।
"मैं तो मूर्तिपूजा के सख्त खिलाफ हूं,
पर मैं मुर्दो की पुजा का पछधर हूं सो मैं श्रेश्ठ हूं"।
दुसरे धर्म ने कहा।
"मै तो मूर्ति पुजा का कट्टर विरोधी हूं,
पर मै एक स्थान-विशेष पर बैठ कर एक चित्र विशेष की पूजा,
उससे प्राथना आराधना का पक्षधर हूं,
सो मैं तुम दोनो से श्रेष्ठ हूं।" तीसरे धर्म ने कहा ।
श्रेष्ठता सिद्ध करने की होड में वे तीनो "धर्मनिरपेक्ष" के पास निर्णय के लिए पहूंचे
और उसके समक्ष अपना-अपना पक्ष रखा। "धर्मनिरपेक्ष" यह सोच कर मुस्कुराया कि
प्रतीक की पुजा तो तीनो ही में प्रचलित है,
पर उसने बडी ही समझदारी से उत्तर दिया,
"जिस धर्म का पालन करनेवाले जहां अधिक हैं,
वहां पर वह धर्म श्रेष्ठ है।
तुम लोगों की श्रेष्ठता तुम्हारेसिद्धांतों मे नहीं,बल्कि बहुमत में है।

1 comment:

ePandit said...

वाह बहुत खूब। बहुत ही सटीक व्यंग्य किया आपने सभी धर्मों के झूठे अहंकार पर।