17 जुलाई को समाचार पत्र में पढ़ा था कि अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के दिन नव गठित राज्य छत्तीसगढ़ का नाम गीनीज बुक आफ वल्ड रीकार्ड अथवा लिम्का बुक मे शामिल हो सकता है, यह कोशिश प्रदेशव्यापी पुस्तक वाचन अभीयान के जरिये की जा रही थी। छत्तीसगढ़ के 14 जिलों में कुल 20,००० (बीस हजार) पुस्तक वाचन केन्द्र बनाये गये, जिसके तहत प्रदेश के १.३० करोड़ किशोर, युवा, वृद्ध, सुबह ८ बजे से रात ८ बजे तक बारी-बारी से ज्ञानवर्धक पुस्तकों का पठन-पाठन करेंगें।
वैसे तो प्रदेश की साक्षरता दर औसतन लगभग 75 है।
प्रदेश की सरकार और मीडिया कुछ भी कहे पर मै जिस-जिस वाचन केन्द्र गया पाठकों की सर्वथा कमी पाई गई, और हिन्दी पुस्तकों की कमी अत्यधिक खली, स्कुली छात्रों की स्वयं की पुस्तकें भी नादारत,
क्योंकि सरकार द्वारा कक्षा 1 से कक्षा 12 तक की सभी पुस्तकें निशुल्क उपलब्ध कराना था पर आज तक सभी पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो सकी, ईसके विपरीत शिक्षा विभाग कार्यालय में किताबें दीमक चाटती दीखीं।
चिन्तन का विषय यह है कि एक ओर हिन्दी के प्रयोग, साक्षरता कार्यक्रमों में सरकार द्वारा करोड़ो रुपये खर्च किये जाते हैं। किन्तू जनता इतनी साक्षर है कि उसे साक्षरता कार्यक्रमो की जरुरत ही नहीं।
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